Thursday, March 15, 2012

आँखों में झील

रात के अंधियारे में
सन्नाटा जब छाता है
आँखों में सजी झील से
कुछ नीर कम हो जाता है

मूँद कर आंखें जो रोकूँ इसे
आँखों का बाँध टूट जाता है
गंगोत्री अश्कों की प्यार में
ऑंखें नहीं दिल बन जाता है

जो घर था खुशियों का
हर बूँद में वो पल है
जलता है अब आग सा
एक परी का महल है


उस नीर के सूख जाने पे
काश दिल में प्यार भी सूख जाये
आँखों में सजी झील से
कुछ और नीर ना कम हो पाए 

2 comments:

  1. very intense and strong expressions !!

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    1. haha...didnt intend to make it that way..
      but i realised this wen i was done writing and im too lazy too work on the same poem again

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