wrote this more than a year back:
तेरी झलक के छीटे
पड़े जब आँखों पे
सागर की लेहरे बढ़ जाएँ
बातें करूँ गुलाबों से
तितलियों की तरह
तेरे पीछे भागूं
फूल है तू मेरा
कैसे जियूँगा तेरे मुरझाने से
रातों से है अब यारी
दिन दिखाए बस सपने
दिल में खिले फुलवारी
तेरा खयाल तक आजाने से
दिल तो था ही पागल
दिमाग का भी अब ठिकाना नहीं
छाया तुम्हारे हुस्न का बदल
खुदा की बक्शीश हो जैसे
मन्नतें है सब अधूरी
धन गुण ज्ञान न चाहूँ
तेरी झलक के छीटे
पड़े जब आँखों पे
सागर की लेहरे बढ़ जाएँ
बातें करूँ गुलाबों से
तितलियों की तरह
तेरे पीछे भागूं
फूल है तू मेरा
कैसे जियूँगा तेरे मुरझाने से
रातों से है अब यारी
दिन दिखाए बस सपने
दिल में खिले फुलवारी
तेरा खयाल तक आजाने से
दिल तो था ही पागल
दिमाग का भी अब ठिकाना नहीं
छाया तुम्हारे हुस्न का बदल
खुदा की बक्शीश हो जैसे
मन्नतें है सब अधूरी
धन गुण ज्ञान न चाहूँ
बस कैद करले प्यारी
अपने दिल की सलाखों से
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