Sunday, July 17, 2011

दो बूँदें आसुओं की

साज़िश दिल लगाने की
जो मै कर गया
दो बूँदें आसुओं की
पी कर ही रेह गया

यादों का घर बनाने की
तमन्ना जो कर गया
आसुओं की बाड़ में
घर ही बेह गया

दिल लुटाने की
हिम्मत जो कर गया
बिखरे टुकड़े दिल के
समेट कर रेह गया

तुम्हे सच बताने की
ताकत जो जुटा गया
दिल तुड़वाने की आदत
मैं लगा कर रेह गया

आँखों से आँख मिलाने की
इच्छा जो कर गया
चट्टान से दर्द की
सीमा पे रेह गया

जिंदिगी तुम्हे देने की
आशा मै कर गया
चंद लम्हे ना दे सकी
तनहा ही रेह गया

प्यार को समझने की
जुर्रत जो कर गया
दो बूँदें आसुओं की
पी कर ही रेह गया

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