Thursday, June 28, 2012

यादें

क्यूँ यादें हैं अब भी बाकी
बिखरी हुई पंखुड़ियां जैसे
सूखी हुई, रौंदी हुई
आसुओं के तले
जब साथ नहीं है बाकी

क्यूँ उनके लिए धड़कता है दिल 
जो तोड़ देते हैं इसको
छोड़ कर, मूह मोड़ कर
खरौन्च्के ज़ख्मों को
फिर भी क्यूँ प्यार करता है दिल

कहते हैं
वक़्त भुला देता है सारे ग़म
सूख जाते हैं सारे आंसू
पर उनके दिए आसूं और ग़म हैं ऐसे
के वक़्त और हम साथ रोते हैं 

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