Thursday, August 12, 2010

खुशियों से दुश्मनी

एक सड़क पे
चलते अकेले
दिख रहे हैं मुझको
लाशों के मेले

नदियों में खून
आसुओं की बूँद
खुशियों से सबकी
दुश्मनी हो जैसे

धुओं में जहाँ है
खुदा तू कहाँ है
क्या मर्ज़ी थी तेरी
ये जो हुआ है

नफरत की आंधी
खा रही है सबको
कलि का प्यार
बढ़ रहा है जैसे 

जलता नहीं सूरज अब
जलते हैं इन्सान
इर्ष्या ने सबको
मौत दी है जैसे

पैसा कभी था
इन्सान के लिए
पर होती है मृत्यु
पैसा भगवन हो जैसे

शायद नरक है बेहतर
धरती से जादा
क्योंकि रोता है हैवान
ए धरती पे ही जैसे

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