Saturday, November 19, 2011

खुदा की बक्शीश

चाहे बातें रुक जाएँ
मुलाकातें रुक जाएँ
रुके ना दिल के संदेसे
प्यार ये रुके ना कभी
चाहे ये साँसें रुक जाएँ


कुछ नीर तुम पीयो
कुछ नीर हम पीयें
एक दूजे की आँखों के प्यालों से
हो जाएँ एक हमारे दिल
कुछ लम्हें तुम जीयो
कुछ लम्हें हम जीयें

इज़हार चाहे ना करो
तुम याद चाहे ना करो
धडकनें बढाती है तुम्हारी मुस्कान
छीन लाऊँ खुदा से ख़ुशी तुम्हारी
तुम प्यार चाहे ना करो

जन्नत की राजकुमारी हो जैसे
तुम खुशियों की फुलवारी हो जैसे
खयालो से तुम्हारे पवित्र होता है मन
तुम हो तो ख़ुशी, वरना है ग़म
जहां में रंग भर्ती हो ऐसे
खुदा की बक्शीश हो जैसे