Wednesday, July 20, 2011

प्यारी दुश्मन

दिल ने रुलाया आँखों को
बनाया घना रेगिस्तान
भूल कर सभी खताओं को
आसुओं से धोयी यादें तमाम

मूरत बना है दिल में
स्वर्ग सा वो चेहरा
निकालूं कैसे तुम्हे
साँसों का है पेहरा

नफरत की जो तुमसे
दिल से हो गयी बैर
रूठकर ज़िन्दिगी से
नर्क की करे सैर

लेकिन मना लूँगा इसे
तन्हाई से करूँगा दोस्ती
दिल दिया था जिसे
निभाऊंगा उस्से दुश्मनी

मेरे इन आसुओं का
क़र्ज़ है ये तुमपे
बनाकर आँखों को बादलों सा
बिछाया नीर होटों पे

बदलेगा ये मौसम भी
रौशन होगा मेरा जहां
याद करोगी उसे कभी
ठुकराई थी जिसकी पनाः

याद करोगी मुझको
जब घेरेगा तूफ़ान
नहीं मिलूँगा हाथ थामने को
आसुओं से धोना यादें तमाम