Thursday, February 23, 2012

ख़याल

बस एक ख़याल है मन में
क्यूँ होता है ये जग में
ख़ुशी के बाद ग़म का साया
ना जाने कहाँ से आया


मुस्कान तो मैंने बाटी थी
चाहे मन में मेरे उदासी थी
फिर क्यों अंधियारे रिश्ते में
क्यों बस अनसु मेरे हिस्से में


बस एक ख़याल है मन में
क्यूँ बस्ता है कोई दिल में
जब बिछड़ना लिखा होता है
क्यों हर दिल कभी टूटा होता है

मुझ भगवान् को बसाओ मन में
उलझे रस्ते खुलेंगे जग में
ग़म ने ही तो सिखाया है
के ख़ुशी मेरे प्यार का साया है


किसीको मुस्कान देते हो
तो उसका मोल क्यों लेते हो
चाहते हो जो हर्ष का साथ
मूंदो आँखें, थामो मेरा हाथ


वो दिल टूट जायेगा
जो मुझे नहीं बसाएगा
और जो मुझे बसाएगा
वो हर दिल में बस जायेगा

हर गुनाह तुम्हारा माफ़
हर दाग तुम्हारा साफ़
बस जो ख़याल है तुम्हारे मन में
बदलो उसे मुझमे

Wednesday, February 8, 2012

ग़म से बातें

Nobody wants to be sad, but this relationship with grief is such that cannot be done away with. And that's what grief says in the first 3 verses. But it's not that its impact cannot be reduced. We can deal with it and that's explained in the last 3 verses.

क्यूँ उदास उदास हो तुम
चेहरे से मुस्कान क्यूँ गुम
मैं ग़म जो साथी हूँ तुम्हारा
कोई दे ना दे मैं दूंगा सहारा

पल भर की खुशियों में
क्यूँ डूब जाते हो
फिर चोट खाने से
मेरे ही गीत गाते हो

कोस लो तुम मुझे
लेकिन ऐसा रिश्ता है हमारा
वो दिया कभी न बुझे
जिसकी लौ में आंसू हो तुम्हारा

ग़म तुम्हे ज़माना कहता है
लेकिन प्यार के साथी हो तुम
हर राह तुम्हारा लहू बहता है
हर दिल के निवासी हो तुम

ख़ुशी से उतना प्यार नहीं
जितना तुमसे दर है
मिलते हो अक्सर वहीँ
ख़ुशी का जहाँ सब्र है

साथ तुम्हारा सदा न होगा
खुशियों के गीत गाने से
बुझेगा आंसुओं का दिया
चेहरे पे मुस्कान लाने से